बैलेंसिंग रॉक जबलपुर | Balancing Rock Jabalpur

Balancing Rock Jabalpur , Balance Rock jabalpur
Balancing Rock Jabalpur 

बैलेंसिंग रॉक्स जबलपुर | Balancing Rocks Jabalpur -

पवित्र नर्मदा नदी के तट पर स्थित जबलपुर भारत के मध्य भाग में स्थित है | जबलपुर में घूमने के लिए कई दर्शनीय स्थल हैं | इन्हीं में से एक है बैलेंसिंग रॉक( Balancing Rock) इसे संतुलित शिला भी कहा जाता है | बैलेंसिंग रॉक सही मायने में एक विशाल भूवैज्ञानिक चमत्कार है। यहाँ दो बड़ी चट्टानें एक दूसरे के ऊपर एक छोटे से आधार पर टिकी हुई हैं | इन्हें देखने से ऐसा लगता है मानो थोडा सा भी धक्का लगने पर गिर जायेंगी | इन चट्टानें ने सदियों से इसी तरह संतुलन बनाया हुआ है | 22 मई 1997 में जबलपुर में आये 6.2 तीब्रता के भूकंप से भी इस चट्टान को कोई नुकसान नहीं पहुंचा | ये चट्टानें ग्रेफाईट पत्थरों से बनी हुई हैं |

बैलेंसिंग रॉक (Balancing Rock) के बारे में कहा जाता है कि यह हजारों साल पहले ज्वालामुखी विस्फोट से बना था। पुरातत्वविद और भूवैज्ञानिक यह बताते हुए सटीक कारण देखने में विफल रहते हैं कि ये चट्टानें इतने सालों तक कैसे अडिग रह सकती हैं। हालांकि, वे मानते हैं कि यह उनका वजन और गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के कारण हो सकता है | भूवैज्ञानिकों के लिए एक बेहद खुशी की बात है कि जबलपुर की यात्रा प्रसिद्ध बैलेंसिंग रॉक्स को देखे बिना अधूरी है।

Balancing Rock Jabalpur , Balancing Rocks Jabalpur
Balancing Rock Jabalpur 

बैलेंसिंग रॉक (Balancing Rock) जबलपुर में मेडिकल रोड के पास स्थित है | बैलेंसिंग रॉक की जबलपुर रेल्वे स्टेशन से दूरी करीब 6 किलोमीटर है | अपने साधन से या मेट्रो बस से यहाँ आसानी से पहुंचा जा सकता है | बैलेंसिंग रॉक्स के पास में ही मदन महल का किला स्थित है | इस किले का निर्माण गोंड राजा मदन शाह ने करवाया था | यह किला रानी दुर्गावती के शासन का केंद्र था | बैलेंसिंग रॉक्स के पास ही शारदा माता का प्रसिद्ध मंदिर भी है | इस चट्टान को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं | 

जबलपुर के मदन महल पहाड़ी पर स्थित बैलेंसिंग रॉक एशिया के तीन प्रमुख बैलेंसिंग रॉक्स में से एक है | जबलपुर में मदन महल पहाड़ी के बैलेंसिंग रॉक के अलावा नयागांव ठाकुर ताल पहाड़ी के जंगलों और नयागांव बिजली ऑफिस प्रशिक्षण संस्थान के पास भी बैलेंसिंग रॉक्स स्थित हैं जो अभी भी लोगों की नजरों से दूर हैं | जबलपुर के इन छुपे हुए  बैलेंसिंग रॉक्स  (Balancing Rocks) को दुनियां के नजरों में लाने की आवश्यकता है ताकि जबलपुर भी पर्यटन के क्षेत्र में देश में अपनी अलग पहचान बना सके | 
 

श्री यंत्र महामेरु मंदिर अमरकंटक | Shriyantra Temple Amarkantak -

Shri Yantra Mahameru Temple - Amarkantak
ShriYantra Mandir Amarkantak

श्री यंत्र महामेरु मंदिर अमरकंटक | Shriyantra Temple Amarkantak -

अमरकंटक मध्यप्रदेश का बड़ा तीर्थ स्थल है | अमरकंटक पवित्र नर्मदा नदी का उद्गम स्थल होने के कारण हिन्दुओं का पवित्र तीर्थ स्थल है और देश में अपनी अलग पहचान रखता है | अमरकंटक में कई प्राचीन और प्रसिद्ध मन्दिर हैं | अमरकंटक घने जंगलों और ऊँची-ऊँची पहाड़ियों से घिरा बहुत ही सुन्दर स्थान है |  

अमरकंटक में स्थित श्रीयंत्र मंदिर एक बहुत ही सुनदर और अनोखा मंदिर है | श्रीयंत्र महामेरु मंदिर को श्रीयन्त्र के 3D रूप में बनाया गया है | श्रीयंत्र मंदिर के द्वार पर चार देवियों के मुख की आकृति की विशाल मूर्तियाँ है | ये मूर्तियाँ माँ लक्ष्मी, माता सरस्वती, काली माँ और देवी भुवनेश्वरी का प्रतिनिधित्व करती हैं | मंदिर के नीचे की तरफ 64 योगनियों की मूर्तियाँ हैं | मंदिर के प्रवेश द्वार पर कार्तिकेय जी और गणेश जी की मूर्तियाँ भी विराजमान हैं | मंदिर की नक्कासी और सुन्दरता अद्भुत है | श्रीयंत्र मंदिर का परिसर गोलाकार है जिसके मध्य में मुख्य मंदिर है  | मंदिर के केंद्र में माता त्रिपुर सुन्दरी की प्रतिमा है | 

Shriyantra Temple Amarkantak
Shri Yantra Mahameru Temple - Amarkantak 

श्रीयंत्र महामेरु मंदिर का निर्माण विशेष नक्षत्र और मुहूर्त में किया जाता है | एक बार नक्षत्र निकलने के बाद निर्माण कार्य रोक दिया जाता है और फिर अगला नक्षत्र आने पर ही मंदिर निर्माण का कार्य किया जाता है | मंदिर का निर्माण कार्य 1991 से किया जा रहा है | मंदिर निर्माण कार्य अभी पूरा नहीं हुआ है | मंदिर की नक्कासी और सुन्दरता अद्भुत है | 

 श्रीयन्त्र मंदिर माँ नर्मदा उद्गम स्थल से 1 किलोमीटर दूर स्थित है| मंदिर सोनमुड़ा मार्ग पर घने जंगलों से घिरा है |  मंदिर का निर्माण महामंडलेश्वर श्री सुकदेवानंद जी महाराज द्वारा कराया जा रहा है | अमरकंटक आने वाले श्रद्धालुओं को श्रीयंत्र महामेरु मंदिर अवश्य जाना चाहिए |

सोनमुड़ा अमरकंटक | Sonmuda Amarkantak -

Sonamuda Amanrkantak , सोनमुड़ा अमरकंटक
सोनमुड़ा अमरकंटक

 सोनमुड़ा अमरकंटक | Sonmuda Amarkantak -

अमरकंटक मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में स्थित हिन्दुओं का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है | अमरकंटक में नर्मदा उद्गम कुण्ड से पवित्र नर्मदा नदी  का उद्गम होता है | माँ नर्मदा उद्गम स्थल से करीब 1.5 किलोमीटर दूर सोनमुड़ा नामक स्थान पर सोन नदी का उद्गम स्थल है | सोन नदी के उद्गम स्थल के पास ही भद्र का उद्गम स्थल भी है | थोड़ी ही दूर पर दोनों का संगम कुंड है | यही कारण है की इसे ''सोन- भद्र'' कहा जाता है | सोन को ब्रम्हाजी का मानस पुत्र कहा जाता है | सोन का वर्णन ब्रम्ह पुराण में मिलता है |

कुंड के पास हनुमान जी, दुर्गा माता और बहुत से देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर है | सोनमुड़ा में आयुर्वेदिक दवाओं की दुकान भी है | कुण्ड से नीचे की तरफ जाने के लिए सीढियां बनी हुई है | यहां सोन-भद्र 300 फीट की पहाड़ी से एक झरने के रूप में नीचे गिरते हैं |

Sonamuda Amanrkantak , सोनमुड़ा अमरकंटक
Sonamuda Amanrkantak 

माना जाता है कि सोन भद्र जलप्रपात से गिरने के पश्चात धरती के अन्दर ही अन्दर 60 किलोमीटर दूर ''सोनबचरबार'' नामक स्थान पर पुनः प्रकट होते हैं और आगे जाकर गंगाजी में विलीन हो जाते हैं |जनश्रुतियों के अनुसार सोन नदी की जल-धारा में आज भी सोने के कण मिलते हैं |

 सोनमुड़ा क्षेत्र में बहुत से लंगूर और बन्दर भी रहते है जिन्हें यहाँ आने वाले श्रद्धालु फूटा  और खाना भी खिलाते हैं | अक्सर ये बन्दर लोगों के पर्स और सामान छीन लेते हैं इसीलिए इन बंदरों से सावधनी बरतना चाहिए | कभी भी इन बंदरों से छीना-झपटी का प्रयास नहीं करना चाहिए नहीं तो ये काट भी सकते हैं |

माई की बगिया अमरकंटक | Mai ki Bagiya Amarkantak -

Mai ki Bagiya  Amarkantak
Mai ki Bagiya Amarkantak

माई की बगिया अमरकंटक | Mai ki Bagiya Amarkantak - 

अमरकंटक एक बहुत ही पवित्र और सुन्दर स्थान है | अमरकंटक से ही पवित्र नर्मदा नदी का उद्गम हुआ है यहाँ माँ नर्मदा के उद्गम स्थान के सांथ-सांथ बहुत से स्थान है जो तीर्थ यात्रियों और सैलानियों के आकर्षण का केंद्र हैं | अमरकंटक में सोन नदी और जोहिला नदी का उद्गम स्थान है | यहाँ माँ नर्मदा कुण्ड के अतिरिक्त माई की बगिया, सोनमुड़ा , कपिलधारा जलप्रपात, दूधधारा जलप्रपात, आश्रम और बहुत से प्रसिद्ध मंदिर भी है |

 अमरकंटक में नर्मदा उद्गम कुंड से 1 किलोमीटर की दूरी पर माई की बगिया नामक स्थान है | माई की बगिया में एक कुण्ड है जिसमें हमेशा ही जल भरा रहता है इस कुण्ड को चरणोदक कुंड के नाम से जानते हैं | कुछ लोगों का मानना है की माँ नर्मदा का वास्तविक उद्गम स्थल यही स्थान है औरमाई की बगिया से निकली जलधारा ही वर्तमान नर्मदा उद्गम कुण्ड से पुनः निकलती है |

 एक अन्य मान्यता के अनुसार माँ नर्मदा बचपन अपनी सहेलियों  के सांथ खेलने के लिए इस स्थान पर आती थीं और यहीं  से अपने लिए पुष्पों को चुनती थीं | आज भी यह स्थान एक बगिया की तरह दिखलाई देता है | माई की बगिया में आम, केले और बहुत से सुन्दर फूलों के पेड़-पौधे लगें है | इस स्थान पर गुलबाकावली के पौधे पाये जाते है | गुलकावली के पौधों से नेत्र रोगों के लिए औषधि बनाई जाती है | जनश्रुति के अनुसार बचपन में गुलबाकावली माँ नर्मदा की सहेली थीं | 

प्राचीन काल में गुलकावली का पौधा सिर्फ माई की बगिया में मिलता था परन्तु अब गुलबाकावली पूरे अमरकंटक क्षेत्र में लगाया जाने लगा है | इस स्थान पर परिक्रमावासियों के रुकने की व्यवस्था की जाती है | चरणोदक कुण्ड के पास ही कुछ छोटे-छोटे मंदिर भी हैं |  मै की बगिया के आस-पास घने पेड़-पौधे होने के कारण बन्दर पाये जाते हैं |

मृगन्नाथ गुफा – बाड़ी जिला- रायसेन | Mrugannath Dham Badi Distt Raisen

 

Mrugannath Dham Badi Distt Raisen
Mrugendranath Gufa 

 मृगन्नाथ गुफा – बाड़ी जिला- रायसेन | Mrugannath Dham Badi Distt Raisen -

रायसेन जिले की बरेली तहसील के बाड़ी कस्बे से करीब 5 किलोमीटर दूरी पर विन्ध्याचल पर्वत श्रंखला में मृगन्नाथ गुफा स्थित है | इस गुफा के बारे में कहा जाता है कि यहाँ नारद ऋषि नेतपस्या की थी |कुछ लोग इसे आदिमानव का निवास स्थान भी मानते हैं | यह गुफा बहुत ही रहस्यमय है कहा जाता है कि इस गुफा का छोर अभी तक किसी को नहीं मिला है | 

2008 में इस गुफा की खोज उज्जैन विक्रम विश्विद्यालय के पुरातत्व विभाग ने की थी | मृगन्नाथ गुफा का प्रवेशद्वार बहुत ही संकरा है और इसमें लेटकर ही जाना पड़ता है | गुफा के अन्दर घना अँधेरा रहता है | बिना टोर्च या कृत्रिम प्रकाश के यहाँ कुछ भी दिखलाई नहीं देता | कुछ दूरी पर नीचे उतरने के बाद गुफा गुफा में खुली जगह मिलती है जो सडक की तरह दिखलाई देती है | इसमें तिराहे , चौराहे और यज्ञस्थल भी दिखलाई देते हैं | गुफा अन्दर इतनी गहरी है की अभी तक इसका अंतिम छोर नहीं मिला है | गुफा के अन्दर भूल-भुलैया है जिससे लोगों के भटकने का डर रहता है | गुफा में जाने के पहले एक रस्सी को गुफा के बाहर कसी स्थान से बांधकर रस्सी के सहारे अन्दर जाते हैं जिससेकोई भटक ना सके | गुफा के पास ही नर्मदा जल धारा और गुप्त गंगा जैसे स्थान भी हैं | 

स्थानीय लोगों को कहना है की वे बचपन से ही इस गुफा के बारे ने देखते सुनते आ रहे हैं परन्तु पहले यहाँ लोग नहीं आते थे लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यहाँ पर्यटक आने लगे हैं | यहाँ आने वाले ज्यादातर लोग अड़वेंचर के शोकीन होते हैं | कुछ शोध करने वाले लोग भी यहाँ आते हैं |

नोट- गुफा के अन्दर घना अँधेरा रहता है और गुफा के अन्दर भूल भुलैया भी है इसीलिए स्थानीय लोगों या किसी जानकार की मदद से उचित प्रकाश के व्यवस्था के सांथ ही गुफा में जाना चाहिए | 

लखबरिया धाम और गुफाएं शहडोल | Lakhwariya Caves Shahdol

Lakhbariya Caves Budhar Shahdol
Lakhbariya Caves

लखबरिया गुफाएं शहडोल | Lakhbariya Caves Shahdol - 

मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में कई धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक स्थान हैं इन्ही में से एक है लखबरिया की गुफाएं ( Lakhbariya Caves ) | लखबरिया की गुफाएं शहडोल जिले की बुढार तहसील में लखबरिया नामक स्थान पर मेकल पर्वत की तराई में स्थित है | शहडोल से लखबरिया की गुफाओं की दूरी लगभग 45 किलोमीटर है | यह स्थान लखबरिया धाम के नाम से प्रसिद्ध है | 

लखबरिया गुफाओं का निर्माण -

लखबरिया में कुछ प्राचीन गुफाएं है  | मान्यतानुसार इन गुफाओं का निर्माण महाभारत काल में पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान करवाया था | कहा जाता है कि अज्ञातवास के समय पाण्डव राजा विराट के नौकर बनकर रहे थे और इसी दौरान उन्होंने ने यहाँ एक लाख गुफाओं का निर्माण किया था | एक लाख गुफाओं के कारण ही इस स्थान का नाम लखबरिया पड़ा | इन गुफाओं का निर्माण लाल बलुआ पत्थर की चट्टनो को काटकर किया गया है |

लखबरिया का ऐतिहासिक महत्व -

 इन गुफाओं का निर्माण लाल बलुआ पत्थर की चट्टनो को काटकर किया गया है | पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार इन गुफाओं का निर्माण दूसरी शताब्दी से लेकर छठी शताब्दी तक चला था | समय के सांथ-सांथ और मौसम की मार से इन गुफाओं का क्षरण हो रहा है| अब लखबरिया में 13 गुफाएं ही शेष बची हैं | ऐसा प्रतीत होता है की इन गुफाओं के पास बैठकर गुरु अपने शिष्यों को ज्ञान देते थे | इनमें से कुछ गुफाओं के अन्दर शिवलिंग भी मिले हैं | कहा जाता है पांडवों ने इन गुफाओं के निर्माण के समय हर गुफा में शिवलिंग की स्थापना की थी | इन गुफाओं के पास एक तालाब भी है | सायद  इस तालाब से यहाँ पानी की पूर्ति होती होगी | आज भी इस तालाब में प्राचीन मूर्तियाँ और गुफाओं के अवशेष मिलती हैं |

Lakhbariya gufa shahdol
Lakhwariya Gufa

लखबरिया का धार्मिक महत्व-

लाखाबरिया की गुफाओं के पास बहुत से मंदिर और देवी-देवताओं के स्थान है | लखबरिया में रामलला मंदिर है जिसमें भगवान राम-लक्ष्मण और माता सीता विराजमान है | कहा जाता है कि भगवान राम ने भी वनवास दौरान कुछ समय यहाँ बिताया था | पास में ही सीता माता की रसोई भी है | लखबरिया में अर्धनारेश्वर महादेव  , दुर्गा माता मंदिर  और राधाकृष्ण मंदिर भी है | मकर संक्रांति के दिन यहाँ मेला भी लगता है |

लखबरिया धाम में महान संत श्री श्री पन्नेलाल बाबा और श्री श्री रामदास जी बाबा की समाधि भी है जिसके दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग यहाँ आते हैं  | 

लखबरिया गुफाओं के संरक्षण की अवश्यकता -

 लखबरिया की गुफाएं संरक्षण के अभाव में अपना अस्तित्व खोती जा रही है | जिन पत्थरों से गुफाएं बनी है वो धीरे-धीरे झड रही हैं | जानकारों  के अनुसार अगर लखबरिया और आप-पास खुदाई की जाए तो और भी कई गुफाएं निकलेंगी | अगर इन गुफाओं का संरक्षण नहीं किया गया तो ये गुफाएं अपना अस्तित्व भी खो सकती हैं |  गुफाओं के अन्दर गंदगी फैली रही  है और आस-पास बरसात में बड़ी-बड़ी घांस उग जाती है | लखबरिया के  पुरातात्विक , धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के कारण एक महत्वपूर्ण पर्यटन के रूप में विकसित होने की अपार संभावनाएं है |  अगर शासन प्रशासन और पुरातत्व विभाग लखबरिया के संरक्षण पर ध्यान दे तो इसे ना सिर्फ शहडोल जिले अपितु सम्पूर्ण मध्य-प्रदेश के प्रयतन स्थलों में स्थान दिलाया जा सकता है